Sant Ravidas- संत रविदास जी का जीवन परिचय

आज हम लोग 15 वी शताब्दी के एक महान संत, दार्शनिक, कवि और समाज सुधारक संत रविदास जी के बारे में जानेंगे। जो बचपन से ही बहुत बहादुर और अत्यधिक ईश्वर के प्रति समर्पित थे। उच्च जाति के द्वारा निम्न जाति के लिए बनायी गयी सारी समस्याओं को सामना किए और इसे बदलने का कार्य किए। अपने लेखन की शक्ति से समाज में हो रहे भेदभाव खत्म करने का काम किए। लोगो को आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश दिए हैं। जिन्हे दुनियाभर में प्यार और सम्मान दिया जाता है। लेकिन सबसे ज्यादा लोकप्रियता की बात करे तो इन्हे उत्तरप्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र राज्यों में हैं। इन राज्यों में उनके भक्ति आंदोलन और भक्ति गीत प्रचलित हैं ।

रविदास जी का जीवन परिचय(Ravidas ji ka jivan parichay in hindi)

संत रविदास जी के जन्म समय को लेकर लोगों की अपनी अलग-अलग राय है। कुछ लोगो का मानना है। इनका जन्म 1376-77 के आस – पास हुआ था, तो कुछ का मानना है, कि इनका जन्म 1399 में हुआ था। लेकिन कुछ दस्तावेजों के अनुसार पता चलता हैं, कि संत रविदास जी का जीवनकाल 15 वीं से 16 वीं शताब्दी ( सन 1450 से 1520) तक था। इनका जन्म वाराणसी के पास “सीर गोबर्धन” नामक गाँव में हुआ था। लेकिन अब इनके जन्म स्थान को ‘श्री गुरु रविदास जन्म स्थान’ नाम से जाना जाता हैं।

संत रवि दास जी के परिवार के बारे में

संत रविदास का जन्म “चंद्रवंशी चंवर चमार” जाति में हुआ था। इनके पिता जी का नाम संतोख दास और माता जी का नाम कलसा देवी था। इनके पिता जी जानवरों के खाल से जूता – चप्पल मरम्मत करने का व्यवसाय था। इसके अलावा इनके पिता जी मल साम्राज्य के राजा नगर में सरपंच थे। और उनके माता जी घर का काम करती थी। इनके दादा जी का नाम कालू राम और दादी जी का नाम लखपति था।

रैदास का जीवन परिचय एक नज़र में

(Raidas Biography in Hindi)

पूरा नाम                                                           गुरु रविदास जी

प्रसिद्ध नाम                                                       रैदास, रूहिदास, रोहिदास

जन्म                                                               15 वी शताब्दी

जन्मस्थल                                                         वाराणसी के पास सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

पिता का नाम।                                                    श्री संतोख दास जी

माता का नाम                                                   कलसा देवी

दादा का नाम                                                   कालू राम जी

दादी का नाम                                                    लखपति जी

गुरु का नाम                                                      पंडित शारदा नन्द

पत्नी का नाम                                                     लोना देवी

बेटे का नाम                                                       विजय दास

मृत्यु                                                                 16 वी शताब्दी  (1540, वाराणसी)

रविदास जी की शिक्षा (Education of Ravidas ji in hindi)

रविदास जी बचपन से ही बहुत बुद्धिमान और होनहार थे। कुछ लोग तो इनको भगवान का रूप मानते थे। इन्होंने शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरु पं शारदा नंद के पाठशाला में गए। लेकिन वंहा पर कुछ उच्च जाति के छात्रों ने विरोध किया। जिसके कारण उनको पाठशाला आने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। बाद में जब पं शारदा नंद को इस घटना का संज्ञान हुआ, तो उन्होंने बाकी छात्रों को समझाया।

पं. शारदा नंद जी को यह महसूस हुआ कि रविदास जी को भगवान द्वारा मेरे लिए एक धार्मिक बालक के रूप में भेजा गया हैं। इनसे और इनके व्यवहार से इनके गुरुजी बहुत प्रभावित थे। इनके गुरु जी को लगता था, कि एक दिन रविदास आध्यात्मिक रूप से प्रबुद्ध होंगे और महान समाज सुधारक बनेंगे।

पठन-पाठन के दौरान पाठशाला में रविदास जी और पं शारदानंद के बेटे की अच्छी दोस्ती हो गई थी।
एक दिन दोनों दोस्त छुपन – छुपाई का खेल रहे थे। खेलते – खेलते रात हो जाती है और रविदास जी कहते हैं, कि अब खेल को यहीं बंद किया जाए पुनः हम लोग फिर अगले दिन खेलेंगे। अगली सुबह रविदास जी खेलने के लिए आए लेकिन उनके दोस्त नहीं आए। लंबे समय तक इंतजार करने के बाद भी नहीं आए तो रविदास जी गुरु जी के घर पहुंच जाते हैं। वहां पर उन्हें पता चलता है कि इनके दोस्त की कल रात में ही मृत्यु हो गई थी। रविदास जी अपने मित्र के पास जाते हैं और कहते हैं कि यह समय सोने का समय नहीं है। उठो लुकाछिपी का खेल खेलने चला जाए। यह बात सुनते ही इनका मित्र जीवित हो गया। यह आश्चर्यजनक क्षण को देखकर इनके गुरु जी, उनकी पत्नी और पड़ोसी आश्चर्यचकित हो गए।

रविदास जी के भजन

रविदास जी के भजन, रविदास जी के दोहे, रविदास जी के फेमस दोहे

हरि सा हीरा छांड के
करै आन की आस
ते नर जमपुर जाहिंगे
सत भाषै रविदास

जा देखै घिन उपजे
नरक कुण्ड में बास
प्रेम भक्ति से उद्वरे
परगट जन रैदास

ऐसा चाहूँ राज मैं जहाँ
मिलै सबन को अन्न
छोट बड़ो सब सम बसे
रैदास रहै प्रसन्न

पराधीनता पाप है
जान लेहु रे मीत
रैदास दास पराधीन सौ
कौन करै है प्रीत

रविदास मदिरा का पीजिए
जो चढ़ी चढ़ी उतराय
नाम महारस पीजिए
जो चढ़ नहीं उतराय

रेन गवाई सोय कर
दिवस गवायों खाय
हीरा यह तन पाय कर
कौड़ी बदले जाए

जात-पात के फेर में
उरझी रहे सब लोग
मनुष्यता को खात है
रविदास जात का रोग

क्या मथुरा क्या द्वारिका
क्या काशी हरिद्वार
रविदास खोजा दिल अपना
ताऊ मिला दिलदार

Ravidas Mandir Varanasi

रविदास मंदिर वाराणसी में बीएचयू के पीछे डाफी क्षेत्र स्थित है। मंदिर का गुम्बद सफेद संगमरमर से निर्मित किया गया है। मंदिर देखने में बहुत ही खूबसूरत एवं भव्य लगता है। दोपहर के समय जब सूर्य की रोशनी मंदिर के गुम्बद से टकराती है, तो मंदिर को दूर से ही देखने पर बेहत खूबसूरत दिखती हैं। रविदास जयंती के दिन मंदिर में दर्शनार्थियों का भीड़ लगा रहता है। जिसमे पंजाबिओ की संख्या ज्यादा होती हैं। इस दौरान पूरा डाफी क्षेत्र उत्सवमय हो जाता है।

मन चंगा, तो कठौती में गंगा (Man changa to kathoti me ganga story)

एक दिन संत रविदास अपनी झोपड़ी में बैठे भगवान का ध्यान कर रहे थे। तभी एक राहगीर ब्राह्मण उनके पास अपना जूता ठीक कराने के लिए आये रविदास जी ने पूछा कहां जा रहे हैं, ब्राह्मण ने उत्तर दिया कि गंगा स्नान करने जा रहा हूं। जूता ठीक करने के बाद ब्राह्मण ने उन्हें एक मुद्रा दिया। लेकिन रविदास जी बोलते हैं कि आप यह मुद्रा मेरी तरफ से मां गंगा माता को चढ़ा देना। ब्राह्मण जब गंगा पहुंचा और गंगा स्नान के बाद जैसे ही ब्राह्मण ने कहा- हे गंगे रविदास की मुद्रा स्वीकार करो, तभी गंगा जी के अंदर से एक हाथ आया और उस मुद्रा को लेकर बदले में ब्राह्मण को एक सोने का कंगन दे दिया। ब्राह्मण गंगा माता के द्वारा दिया गया कंगन लेकर वापस लौट रहा था, तब उसके मन में विचार आया कि रविदास को कैसे पता चलेगा, कि गंगा ने बदले में कंगन दिया है? मैं इस कंगन को राजा को भेंट कर देता हूं, जिसके वो प्रसन्न हो जायेगे और बदले में मुझे उपहार मिलेंगे। उसने राजा को कंगन दिया, बदले में मिला उपहार को लेकर घर चला गया। जब राजा ने वो कंगन रानी को दिया तो रानी बहुत प्रसन्न हुई और बोली मुझे ऐसा ही एक और कंगन दूसरे हाथ के लिए चाहिए।

राजा ने ब्राह्मण को बुलाकर कहा वैसा ही कंगन एक और चाहिए, अन्यथा राजा के दंड का पात्र बनना पड़ेगा। यह बात सुन कर ब्राह्मण परेशान हो गया कि दूसरा कंगन कहां से लाऊं? डरा हुआ ब्राह्मण संत रविदास के पास पहुंचा और सारी बात बताई। रविदास जी बोले कि तुमने मुझे बिना बताए राजा को कंगन भेंट कर दिया, परंतु आप परेशान मत होइए। तुम्हारे प्राण बचाने के लिए मैं गंगा से दूसरे कंगन के लिए प्रार्थना करता हूं। ऐसा कहते ही रविदास जी ने अपनी वह कठौती उठाई, जिसमें वो चमड़ा गलाते थे, उसमें पानी भरा था। रविदास जी ने मां गंगा का आह्वान कर अपनी कठौती से जल छिड़का, जल छिड़कते ही कठौती में एक वैसा ही कंगन प्रकट हो गया! रविदास जी ने वो कंगन ब्राह्मण को दे दिया। ब्राह्मण बहुत ही खुश हो जाता है, और राजा को वह कंगन भेंट करने चला गया। तभी से यह कहावत प्रचलित हुई कि ‘मन चंगा, तो कठौती में गंगा’।

FAQ's

Q:  रविदास जयंती कब मनाई जाती हैं ?

Ans. हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ पूर्णिमा के दिन रविदास जयंती मनाई जाती है।

Q: रविदास जी का जन्म कहां हुआ था ?

Ans.रैदास का जन्म 15 वीं शताब्दी में सीर गोवर्धनपुर गाँव, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था।

Q: संत रविदास जी को और कौन कौन नामो से जाना जाता हैं।

Ans.   रैदास, रूहिदास, रोहिदास

Q: संत रविदास के पिता का क्या नाम था ?

Ans.  संत रविदास के पिता का नाम संतोख दास जी था।

Q: संत रविदास जी की मृत्यु कब हुई थी ?

Ans. संत रविदास जी की मृत्यु 1540 में वाराणसी में हुई थी।

Q:   रविदास किस जाति के थे

Ans.रविदास की चंद्रवंशी चंवर चमार जाति है।

Q:   संत रविदास जी की काव्य रचनाओं की कौन सी भाषा थी ?

Ans.   रैदास की काव्य रचनाओं की मुख्य भाषा ब्रजभाषा है, इसके अलावा अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू-फ़ारसी भाषा के शब्दों का भी मिश्रण हैं।

Q:   संत रविदास जी हिंदी साहित्य के कौन से काल के कवि थे ?

Ans.रैदास हिंदी साहित्य के मध्ययुगीन काल के कवि थे।

Q:  संत रविदास जी के गुरु का क्या नाम था ?

Ans.संत रविदास के गुरु का नाम रामानन्द था।

Q: संत रविदास जी की भक्ति भावना क्या थी ?

Ans.   संत रविदास जी का भक्ति भावना यह था, कि सबको मिल-जुल कर रहना चाहिए। समाज के ऊंच नीच के बंधन को खत्म करना चाहते थे। उनका यही मानना था कि ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। ईश्वर के नाम पर होने वाले वाद विवाद गलत मानते थे।

Q: संत रविदास जी के पत्नी का क्या नाम था ?

Ans. संत रविदास जी का पत्नी का नाम लोणा या लोना देवी था। लोना देवी भी धार्मिक विचारों वाली महिला थी।

Q:  संत रविदास जी के कितने पुत्र थे और क्या नाम था ?

Ans.संत रविदास जी के एक पुत्र थे जिनका नाम विजय दास था।

Q: रविदास और कबीर दास दोनो में क्या सम्बन्ध था, ये कैसे मिले और दोनो का उद्देश्य क्या था ?

Ans.   रविदास और कबीर दास दोनो में गहन मित्र थे। रामानंद गुरु के बारह शिष्यों में से रविदास और कबीर प्रमुख शिष्य थे। अर्थात ये दोनो वही मिले थे।

दोनो का उद्देश्य एक ही था की हिंदू और मुसलमानों को एक साथ में लाने का। 

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