मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand)

जानिये कलम के सिपाही के बारे में

इस आर्टिकल में हम बात करने वाले है,कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद जी के बारे में। इन्होंने अपने कलम की शक्ति से पूरे समाज को एक नई दिशा देने की कोशिश की। उस समय जितनी भी कुप्रथाए (जातिवाद, बालविवाह,) थी, सब पर इन्होंने खुल कर बात किया। उन्होंने अपने कलम के शक्ति से समाज को बदलने की कोशिश किया। 

About Munshi Premchand

जब भी कही लेखक का नाम आता है, तो मुंशी प्रेमचंद का नाम अपने आप जुड़ जाता हैं। इन्होंने अपने कलम की शक्ति से जो लोगों के अंदर आजादी की लौ (आग) बुझ गई थी, उसे फिर से जलाने का काम किया। लोगों के अंदर आजादी को ले कर एक नया जुनून भर दिया था। ब्रिटिश सरकार ने इनको रोकने की काफी कोशिश की। कुछ लोग यह भी कहते हैं, कि ब्रिटिश सरकार इनका हाथ भी कटवाने वाली थी, लेकिन यह संभव ना हो सका । इनको कभी भी उस तरह का सम्मान नहीं मिला हैं, जिस तरह रविन्द्र नाथ टैगोर को दिया जाता हैं। हां जब भी हिन्दी साहित्य की बात आती है, तो इनका नाम सबसे ऊपर लिया जाता है। पर आज के ज़माने में तो इनको भुला ही दिया गया हैं। जबकि इनके बिना हिंदी का विकास का अध्ययन ही अधूरा है। आज भी मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास बहुत सी किताबों में आते हैं। आज हम आपको मुंशी प्रेमचंद के बारे में बतायेंगे । मुंशी प्रेमचंद की जीवनी, munshi premchand biography in hindi, munshi premchand, munshi premchand in hindi, munshi premchand stories in hindi,

Munshi Premchand ka Jeevan parichay

विषय जानकारियों

नाम                                       मुंशी प्रेमचंद

बचपन का नाम                            धनपत राय

जन्म 31 जुलाई 1880

जन्म स्थल       वाराणसी के लमही गाँव मे 

मृत्यु 8 अक्टूबर 1936(56 वर्ष)

पिता अजायब राय

माता आनंदी देवी

शादी की तारीख  साल 1895 (पहली शादी)

                                साल 1906 (दूसरी शादी)

भाषा हिन्दी व उर्दू

राष्ट्रीयता हिन्दुस्तानी

प्रमुख रचनाये गोदान, गबन

प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई सन् 1880 में देवभूमि बनारस शहर से चार मील दूर लमही गाँव में हुआ था। इनके पिता जी का नाम अजायब राय तथा माता जी का नाम आनंदी देवी था। प्रेमचंद अपने परिवार में चौथी संतान थे, हालाँकि उनकी पहली दो बहनो का जन्म के समय ही निधन हो गया था, और तीसरी बहन जिसका नाम आनंदी देवी था। इनका जन्म एक समृद्ध परिवार में हुआ था। इनका 9 बीघा खेत था, और पिता जी डाकखाने में क्लार्क का काम करते थे। इनका जीवन बचपन से ही संघर्षमय था। जब प्रेमचंद जी का उम्र आठ वर्ष थी,तभी एक गंभीर बीमारी से, इनकी माता जी का देहांत हो गया। बहुत कम उम्र मे, इनकी माताजी का देहांत हो जाने के कारण, प्रेमचंद जी को माँ का प्यार नही मिल पाया। माता जी के देहांत के बाद प्रेमचंद एवं उनकी बड़ी बहन की देखभाल उनकी दादी करती थी। कुछ ही समय बाद इनकी दादी का भी देहांत हो गया था। 

उसके बाद इनके बहन की भी कम उम्र में ही शादी कर दी गयी थी। अब मुंशी प्रेमचंद घर में अकेले पड़ गए । पिता जी अपने नौकरी पर चले जाते थे, और ये गुमसुम रहने लगे थे। कुछ समय बाद इनके पिता जी का तबादला हो गया और इनका गोरखपुर में प्रविष्टि (posting) मे हुई। इनके पिता जी ने दूसरा विवाह कर लिया। सौतेली माता ने कभी प्रेमचंद जी को पूर्ण रूप से नही अपनाया। फिर ये पूरी तरह से अकेले पड़ जाते हैं, अब इन्होने अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए किताबें पढ़ना शुरू कर दिया और वही से मुंशी प्रेमचंद का ध्यान साहित्य की तरफ जाने लगा। 

मुंशी प्रेमचंद का विवाह (Munshi Premchand Marriages)

उस समय कम उम्र मे ही शादी हो जाती थी। पिताजी के दबाव मे आकर मात्र 15 साल की उम्र में 1995 में इनका विवाह कर दिया गया। इनको बहुत ही कम उम्र में प्यार भी हुआ था, लेकिन लड़की छोटी जाति की थी। इसलिए उससे इनका विवाह नहीं हुआ, बाद में इन्होने कुछ सॉर्ट स्टोरी में इसका जिक्र भी किया हैं । इनका जिससे विवाह हुआ था उनकी उम्र भी इनसे अधिक थी, वो स्वभाव से बहुत ही झगड़ालू प्रवित्ति और बदसूरत भी थी। दोनो में काफी ज्यादा अंतर था। सौतेली माता और पत्नी से इनकी नहीं बनती थी, झगड़े होते रहते थे। इन सबसे ये बहुत परेशान हो गए थे। एक बार जब इनकी पत्नी ने आत्महत्या करने की कोशिश की थी, तो मुंशी प्रेमचंद ने बहुत ही गुस्से में आकर उनको डाटा था, जिससे नाराज़ हो कर वे अपने माइएके (माँ के घर) चली गयी और मुंशी प्रेमचंद भी इनको कभी लेने के लिए नहीं गए। फिर सन 1906 में इनका दूसरा विवाह शिवरानी देवी से हुआ ,जो एक बाल-विधवा औरत थी। इनकी तीन सन्ताने हुई-श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव।

शिक्षा (Munshi Premchand Education)

उन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा उर्दू और फारसी भाषाओं में की। शुरू से ही प्रेमचंद जी को पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था। मात्र 13 साल की उम्र में इन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया था। उन्होंने प्रसिद्ध उर्दू लेखकों के कई उपन्यास भी पढ़े।10वी की शिक्षा पूरी करने के बाद इनको एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया।

 1910 में अंग्रेज़ी, दर्शन, फ़ारसी और इतिहास से इन्होंने इण्टर किया और 1919 में अंग्रेजी, फ़ारसी और इतिहास से इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी. ए. की पढ़ाई पूरी की । बी.ए. पास करने के बाद ये शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए। 

मुंशी प्रेमचंद्र

प्रेमचंद का संघर्ष (STRUGGLE )

कुछ ही समय के बाद 1897 में पिताजी की भी मृत्यु हो गयी और घर का पूरा भार प्रेमचंद जी के कंधो पर आ गया। अब इनको पढ़ाई और घर दोनो संभालना था। तब इन्होने एक वकील साहब के लड़के को पढ़ाने का काम शुरू किया। इनको 5 रुपए वेतन मिलता था। जिसका 60 प्रतिशत ये घर पर भेज दिया करते थे।

प्रेमचंद का वाराणसी में बिताया गया समय (Munshi premchand life in varanasi)

अपने आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए मुंशी प्रेमचंद वाराणसी सिटी आ गए। लेकिन इंटर में इनका प्रथम श्रेणी ( 60%) से कम था, तो इनको बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) में दाखिला नहीं मिल पाया । घर की मजबूरी को देखते हुए इन्होंने अपनी पढ़ाई को कुछ समय के लिए रोक देना ही बेहतर समझा । वही पर ये वकील साहब के बच्चे को पढ़ाने लगे। यहाँ पर परिस्थियाँ बहुत ही मुश्किल थी और ये एक तबेले (गोशाला) में रहते थे। लेकिन जो इनका पढ़ने (उपन्यास) और लिखने का शौक था, वो कभी कम नहीं हुआ। बहुत जल्दी ही इनका मुश्किल समय खत्म हुआ और 1900 में बहराइच में 20 रुपए की मासिक आय पर सरकारी शिक्षक की नौकरी मिल गयी। 

साहित्य की ओर/ CAREER

मुंशी प्रेमचंद बहराइच से ही गहन अध्ययन करते थे।इनकी रुचि धीरे धीरे साहित्य लिखने की ओर जाने लगी कि अब मैं भी लिखूंगा। बहराइच से प्रतापगढ़, प्रतापगढ़ से प्रयागराज (इलाहाबाद) और प्रयागराज से कानपुर इनका तबादला (posting) हुआ। कानपुर में 1905 से 1909 (4 साल) तक नौकरी की।यहाँ इन्होंने अपनी पहली उपन्यास लिखना शुरू किया – “सोज़े वतन”।

सोज़े वतन को मुंशी प्रेमचंद्र ने लोगों के मन मे देश भक्ति की भावना जगाने के लिए लिखा था।इसे पढ़ कर लोगो के अंदर इतना जुनून भर गया, कि ब्रिटिश सरकार ने इसकी 500 कॉपी जलाने के आदेश दे दिये और इस पर रोक लगा दी । उसके बाद ये कानपुर में एक ज़माना नाम के पत्रिका के लिए काम करने लगे जो एक उर्दू पत्रिका थी। मुंशी प्रेमचंद पहले उर्दू में लिखते थे, बाद में हिंदी में भी लिखना शुरू कर दिया। 1909 में इनकी पदोन्नति (promotion) हुई और ये गोरखपुर आ गए। 1919 में स्नातक हो जाने के बाद इनको स्कूल का “डेप्युटी इंस्पेक्टर” बना दिया गया था।लेकिन गांधी जी का असहयोग आंदोलन के तहत इन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी थी। उसके बाद अपना पूरा ध्यान साहित्य की तरफ लगा दिया । उसके बाद इन्होंने गोदान, निर्मल, दो बैलों की कथा ,प्रतिज्ञा और ईदगाह इत्यादि रचनाएं लिखी। नौकरी छोड़ने के बाद फिर ये बनारस आ गए और 1923 में अपना प्रिंटिग प्रेस खोला, “सरस्वती प्रिंटिग प्रेस” के नाम से जोकि पूरी तरह से हानि में चला गया। फिर इन्होंने जागरण पत्रिका प्रकाशित की, वह भी हानि में चली गई। इसी दौरान एक गबन उपन्यास प्रकाशित किए जो बहुत चली। आप इसको एक बार जरूर पढ़िए(____link ___) लेकिन इन पर कर्ज बहुत ज्यादा हो गया था। इसलिए इन्होंने बंबई (मुंबई) जाने का फ़ैसला किया।

प्रेमचंद का मुंबई में बिताया गया समय (munshi premchand life in mumbai)

 ये 31 मई 1934 को मुम्बई गए। बॉलीवुड में काम करने के लिए इनको एक लेखक के तौर पर 8000 प्रति साल के वेतन पर नौकरी मिली। इनको लगा, कि अब मैं अपना सारा कर्ज चुका दूंगा। लेकिन इनका स्वभाव शुरू से ही एक क्रांतिकरी वाला था। मुंशी प्रेमचंद ने अपनी पहली फ़िल्म मजदूर लिखी जोकी मजदूरों के क्रांति पर आधारित था। जहां-जहां ये फिल्म चली वहां के मजदूर इस फिल्म को देखने के बाद धरने पर बैठ गए, और सभी कारखानो के व्यापारी परेशान हो गए थे। इसलिए तुरंत ही इस फिल्म को बंद कर दिया गया। उसके बाद इन्होंने घर वापस आने की फ़ैसला किया। इनको रोकने के लिए बहुत से प्रस्ताव (ऑफर) दिए गए, लेकिन ये रुके नहीं और 1935 में वापस आ गए।

प्रेमचंद की मृत्यु (where was munshi premchand Died)

मुंबई से वाराणसी वापस आने के बाद इनका स्वास्थ्य निरन्तर बिगड़ता गया, और एक लम्बी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को दुनिया से अलविदा ले लिए। इनकी मृत्यु से कुछ दिन पहले 1936 में ही इन्हे progressive writer association का अध्यक्ष बनाया गया था।

Munshi premchand ki rachnaye

मुंशी प्रेमचंद ने विभिन्न साहित्यिक रूपों में लिखा, सभी लोग उनकी रचना-दृष्टि से काफी प्रेरित थे। प्रेमचंद एक विपुल लेखक थे। जिन्होंने कई अलग-अलग शैलियों में उपन्यास, कहानियां, नाटक, समीक्षा, लेख, संपादकीय और संस्मरण लिखे। उन्हें मुख्य रूप से एक कथावाचक के रूप में जाना जाता था। उन्होंने 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बच्चों की किताबें, और हजारों पृष्ठों के लेख, संपादकीय, भाषण, पात्र, पत्र और भी बहुत कुछ लिखा है। मंगलसूत्र उनकी अधूरी (अपूर्ण) रचना है।

Munshi premchand ki kahaniya / stories

मुंशी प्रेमचंद द्वारा 300 से अधिक कहानियों रचना की गई थी। प्रेमचंद जी का पहला कहानी संग्रह सोज़े वतन था, जिसे ब्रिटिश सरकार ने जप्त कर लिया था।

मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई कुछ कहानियों के नाम : 

  • अन्धेर
  • अनाथ लड़की
  • अपनी करनी
  • अमृत
  • अलग्योझा
  • आख़िरी तोहफ़ा
  • आखिरी मंजिल
  • आत्म-संगीत
  • आत्माराम
  • दो बैल की कथा
  • आल्हा
  • इज्जत का खून
  • इस्तीफा
  • ईदगाह
  • ईश्वरीय न्याय
  • उद्धार
  • एक ऑंच की कसर
  • एक्ट्रेस
  • कप्तान साहब
  • कर्मों का फल
  • क्रिकेट मैच
  • कवच
  • क़ातिल
  • कोई दुख न हो तो बकरी खरीद ला
  • कौशल़
  • खुदी
  • गैरत की कटार
  • गुल्‍ली डण्डा
  • घमण्ड का पुतला
  • ज्‍योति
  • जेल
  • जुलूस
  • झांकी
  • ठाकुर का कुआं
  • तेंतर
  • त्रिया-चरित्र
  • तांगेवाले की बड़
  • तिरसूल
  • दण्ड
  • दुर्गा का मन्दिर
  • देवी
  • देवी – एक और कहानी
  • दूसरी शादी
  • दिल की रानी
  • दो सखियाँ
  • धिक्कार
  • धिक्कार – एक और कहानी
  • नेउर
  • नेकी
  • नब़ी का नीति-निर्वाह
  • नरक का मार्ग
  • नैराश्य
  • नैराश्य लीला
  • नशा
  • नसीहतों का दफ्तर
  • नाग-पूजा
  • नादान दोस्त
  • निर्वासन
  • पंच परमेश्वर
  • पत्नी से पति
  • पुत्र-प्रेम
  • पैपुजी
  • प्रतिशोध
  • प्रेम-सूत्र
  • पर्वत-यात्रा
  • प्रायश्चित
  • परीक्षा
  • पूस की रात
  • बैंक का दिवाला
  • बेटोंवाली विधवा
  • बड़े घर की बेटी
  • बड़े बाबू
  • बड़े भाई साहब
  • बन्द दरवाजा
  • बाँका जमींदार
  • बोहनी
  • मैकू
  •  मन्त्र
  • मन्दिर और मस्जिद
  • मनावन
  • मुबारक बीमारी
  • ममता
  • माँ
  • माता का ह्रदय
  • मिलाप
  • मोटेराम जी शास्त्री
  • र्स्वग की देवी
  • राजहठ
  • राष्ट्र का सेवक
  • लैला
  • वफ़ा का ख़जर
  • वासना की कड़ियॉँ
  • विजय
  • विश्वास
  • शंखनाद
  • शूद्र
  • शराब की दुकान
  • शान्ति
  • शादी की वजह
  • शान्ति
  • स्त्री और पुरूष
  • स्वर्ग की देवी
  • स्वांग
  • सभ्यता का रहस्य
  • समर यात्रा
  • समस्या
  • सैलानी बन्दर
  • स्‍वामिनी
  • सिर्फ एक आवाज
  • सोहाग का शव
  • सौत
  • होली की छुट्टी
  • नम क का दरोगा
  • गृह-दाह
  • सवा सेर गेहुँ नमक कादरोगा
  • दुध का दाम
  • मुक्तिधन
  • कफ़न

प्रेमचंद की प्रमुख कहानियाँ:- “बड़े घर की बेटी, रानी सारन्धा, नमक का दरोगा, सौत, आभूषण, प्रायश्चित, कामना, मन्दिर और मसजिद, घासवाली, महातीर्थ, सत्याग्रह, लांछन, लैला और मन्त्र” है

Munshi premchand ke upanyas

  • गोदान 
  • गबन 
  • निर्मला 
  • प्रेमा 
  • रंगभूमि 
  • कर्मभूमि
  • वरदान 
  • प्रतिज्ञा 
  • अलंकार 
  • दुर्गादास 
  • मंगलसूत्र (अपूर्ण)
  • हमखुर्मा व हमसवाब 
  • रामचर्चा 
  • सेवासदन 
  • प्रेमाश्रम 
  • रूठी रानी 
  • शेख सादी

मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख उपन्यास 

सेवासदन , प्रेमाश्रम , रंगभूमि , निर्मला , कायाकल्प , गबन , कर्मभूमि , गोदान और मंगलसूत्र (अपूर्ण) हैं 

Movies/TV serials based on premchand works (प्रेमचंद की कितनी रचनाओं पर फ़िल्म बनी है?)

हिंदी सिनेमा की बात किया जाए तो प्रेमचंद सबसे अधिक लोकप्रिय साहित्यकारों में से हैं। बॉलीवुड फिल्म के निर्देशक (director) सत्यजित राय ने प्रेमचंद की दो रचनाएं पर यादगार फ़िल्में बनाया हैं। पहली फिल्म सन 1977 में शतरंज के खिलाड़ी और दूसरी फिल्म सन 1981 में सद्गति बनाई थी। प्रेमचंद के देहांत के दो वर्ष बाद बॉलीवुड फिल्म के निर्देशक (director) सुब्रमण्यम जी ने सन 1938 में सेवासदन उपन्यास पर फ़िल्म बनाई, जिसमें सुब्बालक्ष्मी जी ने मुख्य भूमिका निभाई थी। तेलुगू फिल्म के निर्देशक मृणाल सेन ने सन 1977 में प्रेमचंद की कहानी कफ़न पर आधारित ओका ऊरी कथा नामक तेलुगू फिल्म बनाई, जिसको सर्वश्रेष्ठ तेलुगू फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था। सन 1963 में प्रेमचंद की गोदान उपन्यास पर लोकप्रिय फ़िल्में बनीं। सन 1966 में गबन उपन्यास पर लोकप्रिय फ़िल्में बनीं, और सन 1980 में प्रेमचंद की लोकप्रिय उपन्यास निर्मला पर टीवी धारावाहिक बना, जो की बहुत ही लोकप्रिय रहा।

मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand)- जानिये कलम के सिपाही के बारे में

Munshi premchand - Mansarovar

मानसरोवर (कथा संग्रह) प्रेमचंद द्वारा लिखी गई कहानियों का संकलन है। उनके मृत्यु के बाद मानसरोवर नाम से 8 खण्ड प्रकाशित किए गए। इस संकलन में उनकी दो सौ से भी अधिक कहानियों को शामिल किया गया है। 

Premchand ki Pramukh (best) rachnaye

पूस की रात, गोदान, बड़े घर की बेटी, निर्मला, पंच परमेश्वर, रंगभूमि, प्रतिज्ञा, सेवा सदन, काया कल्प, दुर्गा दास, दीपदान (एकांकी), प्रेमाश्रम, गबन, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा और कफन

Munshi premchand ki Godan

गोदान प्रेमचन्द द्वारा लिखी गई अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण उपन्यास है। कुछ लोग गोदान को सर्वोत्तम रचना भी मानते हैं। 1936 में इसे हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई द्वारा प्रकाशित किया गया था। इसमें भारतीय ग्रामीण समाज एवं परिवेश का सजीव चित्रण किया गया है।

Munshi premchand bade ghar ki beti

 बड़े घर की बेटी में प्रेमचंद जी ने संयुक्त (joint) परिवारों में होने वाले झगड़ो, समस्याओं और जरा जरा सी बातों के बतंगड बन जाने को बहुत ही सुंदरता से दर्शाया है।

Munshi premchand - Nirmala

 मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित प्रसिद्ध हिन्दी उपन्यास में से एक निर्मला भी है। इस उपन्यास में प्रेमचन्द जी दहेज प्रथा और अनमेल विवाह के आधार पर बड़े सुंदरता से दर्शाया है। जिस समय दहेज़ प्रथा के विपक्ष कोई आवाज भी नहीं उठता था। 

munshi premchand ki bhasha shaili

“मुंशी प्रेमचंद जी उर्दू से हिन्दी में आए थे; अत: उनकी भाषा में उर्दू की चुस्त लोकोक्तियों तथा मुहावरों के प्रयोग की प्रचुरता मिलती है। इससे उनकी सभी रचनाएं और भी दिलचस्प हो जाती है।

मुंशी प्रेमचंद भाषा सहज, सरल, व्यावहारिक, प्रवाहपूर्ण, मुहावरेदार एवं प्रभावशाली है तथा उसमें अद्भुत व्यंजना-शक्ति भी विद्यमान है।”

munshi premchand awards

प्रेमचंद पुरस्कार महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी (academy) की ओर से साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय (notable) कार्य करने वाले साहित्यकार को दिया जाता है। पुरस्कार में 25,000, रुपये नकद, स्मृति चिह्न, शॉल और श्रीफल प्रदान दिए जाते हैं।

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा भी एक साहित्य पुरस्कार “प्रेमचंद स्‍मृति पुरस्कार” नाम से प्रदान किया जाता है।

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