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ToggleHistory of Kashi Vishwanath Mandir:काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास
महादेव की नगरी काशी को हमेशा से ही देव भूमि के नाम से जाना जाता है काशी गंगा नदी के किनारे बसी है। बनारस धार्मिक महत्व के कारण दुनियाभर में प्रसिद्ध है यहा दूर दू-र से यात्री महादेव के दर्शन करने के लिए आते है, 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख मंदिर काशी विश्वनाथ अनादिकाल से ही काशी में है यह भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान है। यहा के गंगा आरती में शामिल होने के लिए दूर दूर से लोग आते है धार्मिक मान्यता है कि दैविक काल से ही महादेव काशी में वास करते है और यह भी कहा जाता है की काशी भगवान शिव के त्रिशूल पे टिका है और लोगो का मान्यता है की इसलिए काशी में कभी भयानक प्राकृतिक आपदा नहीं आती है और काशी को मोक्ष द्वार भी कहा जाता है.
Kashi Vishwanath Temple Story: मंदिर का निर्माण और इतिहास
- प्राचीन इतिहास: इस मंदिर का निर्माण कब हुआ, इस बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है। हालांकि, मान्यता है कि यह मंदिर हजारों साल पुराना है।
- बार–बार निर्माण और विनाश: इस मंदिर को कई बार तोड़ा गया और फिर से बनाया गया। मुगल काल में औरंगजेब ने इस मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवा दी थी।
- आधुनिक मंदिर: 18वीं शताब्दी में मराठा शासकों ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया।
- स्वतंत्रता के बाद: भारत की आजादी के बाद, मंदिर परिसर का विस्तार किया गया और इसे और अधिक भव्य बनाया गया।
- ज्योतिर्लिंग: काशी विश्वनाथ मंदिर में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के स्वयंभू रूप माने जाते हैं।
- धार्मिक महत्व: यह मंदिर हिंदू धर्म में सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। लाखों श्रद्धालु हर साल यहां दर्शन करने आते हैं।
- वास्तुशिल्प: मंदिर की वास्तुकला बहुत ही खूबसूरत और जटिल है। इसमें हिंदू धर्म के विभिन्न तत्वों को दर्शाया गया है।
काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास को हजारों साल पुराना है. कहा जाता है इस मंदिर का पुनरनिर्माण 11वीं शताब्दी में राजा हरीशचन्द्र द्वारा निर्माण किया गया था. इसके बाद 1194 ईसवी में इसे मुहम्मद गौरी ने खंडित कर दिया था जिसके बाद इसका पुन: निर्माण कराया गया. जौनपुर के महमूद शाह ने काशी विश्वनाथ मंदिर को 1447 ईसवी में तुड़वाया था और इस तरह 11वीं सदी से 15वीं सदी तक कई बार काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ा और फिर बनवाया गया.
1632 ईसवी में शाहजहां ने मंदिर तुड़वाने के लिए अपनी फौज भेजी थी लेकिन सेना की असफलता के बाद 1669 में औरंगजेब ने मंदिर ध्वस्त करा दिया था. मौजूदा मंदिर के स्थान पर 1780 में इसका एक बार फिर निर्माण हुआ था. महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 125 सालो बाद फिर से मंदिर का निर्माण करवाया और यहां दर्शन करने के लिए शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस, संत एकनाथ, महर्षि दयानंद, स्वामी विवेकानंद और गोस्वामी तुलसीदास आए थे.
काशी विश्वनाथ मंदिर: ज्योतिर्लिंग की कथा
शिव पुराण में ज्योतिर्लिंगों की कहानी का वर्णन है. कहानी के अनुसार एक बार त्रिदेवों में से दो, विष्णु और ब्रह्मा के बीच लड़ाई हुई थी कि कौन सर्वश्रेष्ठ है. उनका परीक्षण करने के लिए, भगवान शिव ने प्रकाश के एक विशाल अंतहीन स्तंभ के रूप में तीनों लोकों को छेद दिया, जिसे ज्योतिर्लिंग कहा जाता है. ज्योतिर्लिंग शिव के प्रतीक हैं, जो लगभग पूरे ब्रह्मांड में फैले हुए हैं. विष्णु और ब्रह्मा को इस प्रकाश को अंत तक खोजना था।
ब्रह्मा और विष्णु ने विपरीत दिशाओं से भाग लिया. ब्रह्मा ने ऊपर की ओर और विष्णु ने नीचे की ओर अपनी यात्रा शुरू की. ब्रह्मा ने झूठ बोला कि उन्हें अंत मिल गया, जबकि विष्णु ने ईमानदारी से अपनी हार स्वीकार कर ली.
शिव भगवान ब्रह्मा जी के झूट बोलने से नाराज़ हो गए और फिर उन्होंने भगवान् भैरव का रूप धारण किया और ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया और उन्हें शाप दिया कि उनकी कही भी पूजा नहीं होगी, जबकि विष्णु की अनंत काल तक पूजा की जाएगी.
काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी अद्भुत कहानियां
काशी विश्वनाथ मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं है, बल्कि यह सदियों से अनेक किंवदंतियों और कहानियों का केंद्र रहा है। इन कहानियों ने इस मंदिर को और अधिक पवित्र और रहस्यमयी बना दिया है। आइए, कुछ ऐसी ही कहानियों पर एक नज़र डालते हैं:
मार्कंडेय ऋषि और पार्वती
- कथा: मान्यता है कि प्राचीन काल में मार्कंडेय ऋषि ने यहां तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए थे।
- महत्व: यह कथा मंदिर की प्राचीनता और इसके धार्मिक महत्व को दर्शाती है।
राजा रावण और काशी विश्वनाथ
- कथा: रामायण के अनुसार, रावण ने भी काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन किए थे। वह एक महान शिव भक्त था और उसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई कठोर तपस्याएं की थीं।
- महत्व: यह कथा दर्शाती है कि भगवान शिव सभी भक्तों पर समान रूप से कृपा करते हैं।
अहिल्याबाई होल्कर और मंदिर का पुनर्निर्माण
- कथा: 18वीं शताब्दी में मराठा शासकों, विशेषकर अहिल्याबाई होल्कर ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। उन्होंने मंदिर को वर्तमान रूप दिया।
- महत्व: अहिल्याबाई होल्कर को एक महान धार्मिक व्यक्ति माना जाता है और उन्होंने कई मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया था।
मणिकर्णिका घाट और मोक्ष
- कथा: मणिकर्णिका घाट मंदिर के पास स्थित है और यहां हिंदुओं का अंतिम संस्कार किया जाता है। मान्यता है कि यहां मृत्यु होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- महत्व: यह घाट हिंदुओं के लिए एक पवित्र स्थल है और यहां मृत्यु को मोक्ष का द्वार माना जाता है।
ये कहानियां मंदिर के इतिहास और महत्व को दर्शाती हैं। ये कहानियां हमें बताती हैं कि यह मंदिर सदियों से लोगों की आस्था का केंद्र रहा है। ये कहानियां हमें धर्म, संस्कृति और इतिहास के बारे में बहुत कुछ सिखाती हैं।