Nandi near Gyanvapi Mosque- ज्ञानवापी मस्जिद और नंदी जी
ज्ञानवापी मस्जिद वाराणसी के विवादित मस्जिद है। इस मस्जिद का निर्माण वर्ष 1735 में औरंगजेब ने प्राचीन शिव मंदिर को तोड़ कर करवाया था। करीब 135 वर्ष बाद इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने पुनः काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था।
ज्ञानवापी मस्जिद और विश्वेश्वर मंदिर के अस्तित्व को लेकर मुस्लिम पक्ष और हिन्दू पक्ष के मध्य सदैव से ही विवाद रहा है। यही कारण है की वर्ष 2021 पांच हिन्दू महिलाओ के द्वारा एक याचिका दायर की गई जिसमे उन के द्वारा मांग कि गई की उन्हें गौरी श्रृंगार, गणेश पूजन , नंदी पूजन कि इजाजत दी जाये। वर्ष 2022 इस याचिका कि सुनवाई करते हुए मस्जिद परिसर का सर्वे किया गया था।
ज्ञानवापी मस्जिद के पास स्थित नंदी जी का विवरण-Gyanvapi Masjid Nandi in Detail
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वे के दौरान पाया गया कि वजू खाने में शिवलिंग के जैसी आकृति मिली है। शिवलिंग मिलने के बाद मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह वजू खाने में स्थापित एक फुव्वारा है जो कि अभी कार्यरत नहीं है।
हिन्दू पक्ष फुव्वारा होने के तर्क से सहमत नहीं है। इसके पीछे मुख्य कारण है ज्ञानवापी मस्जिद में भगवान् शिव के गण नंदी विराजमान है.
काशी विश्वनाथ मंदिर में विराजे नंदी का मुँह मस्जिद कि तरफ है, साथ ही साथ नंदी और शिवलिंग के बीच लोहे कि ग्रिल लगी हुई है। हिन्दू पक्ष दावा करता है कि वजू खाने में स्थित शिवलिंग कि तरफ नंदी का मुँह है और नदी व् शिवलिंग में 83 फ़ीट कि दूरी है। इसलिए नंदी कि स्थिति से साफ साफ कह सकते है कि वजू खाने में स्थित आकृति शिवलिंग है।
भगवान् शिव और नंदी का इतिहास-Shiv and Nandi Story
हिन्दू पुराणों के अनुसार भगवान् शिव और नंदी का विशेष सम्बन्ध है। जिस भी स्थान पर भगवान् शिव कि मूर्ति होगी वहां नंदी अवश्य विराजमान होंगे। नंदी को भगवान् शिव का द्वारपाल और वाहन भी कहा जाता है।
पुराणों के अनुसार शिलाद नाम के ऋषि थे उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान् शिव कि तपश्या कि थी। भगवान् शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें नंदी पुत्र के रूप में दिए।
एक बार ऋषि वरुण ऋषि शिलाद के घर आये तो उन्होंने ऋषि शिलाद को लम्बी आयु का आशीर्वाद दिया परन्तु नंदी को कोई आशीर्वाद नहीं दिया। जब ऋषि शिलाद ने इसका कारण पूछा तो ऋषि वरुण ने बताया कि नंदी कि उम्र कम है।
तब से नंदी ने भगवान् शिव कि उपासना शुरू कर दी भगवान् शिव ने नंदी से प्रसन्न होकर कर वरदान मांगने के लिए कहा। उस वक़्त नंदी ने वरदान स्वरुप माँगा कि मै हमेशा आपकी छत्रछाया में रह सकूँ।
तब से भी नंदी भगवान् शिव के गण बन कर उनके साथ रहते है।
पुराणों के अनुसार ही काशी विश्वनाथ में स्थित नंदी कि विराज मान स्थित को देख कर कहा जाता है कि वजूखाने में मिली आकृति शिवलिंग है।