About Kabirdas in Hindi – कबीरदास के बारे में

About Kabirdas in Hindi

आज आप बहुत ही ज्यादा उत्साहित (motivate) होने वाले हैं, क्योंकि आज हम इस आर्टिकल में जानेंगे। ऐसे दार्शनिक (philosopher), के बारे में जिनके दोहों, चोपाइयो ने पूरी दुनिया को बदल दिया था। तभी तो आज हम 600 साल बाद भी स्कूलों में इनके दोहों और चोपाइयो को पढ़ाया जाता है। जो भी कु-कृत (बेकार काम) होते थे, धर्म के माध्यम से हिन्दू या मुसलमान धर्म दोनो पर इन्होंने खुल कर बात किया। इन्होंने अपने दोहों और चोपाइयो के माध्यम से सोच की क्रांति ला दी थी। चलिए अब जानते हैं महान कृतक संत कबीर दास जी का जीवन परिचय। (kabir das jivan parichay)

कबीर दास जी का जीवन परिचय (Kabir das biography in hindi)

संत कबीर दास का जन्म विक्रमी संवत 1455 (1398) में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को ब्रह्ममूहर्त के समय हुआ था। इनके जन्म के संबंध में लोगो द्वारा अनेक प्रकार की बातें सुनने को मिलती हैं। कुछ लोगों का कहना है, कि संत कबीर दास विश्व गुरु रामानंद स्वामी (Ramanand Swami) जी के आशीर्वाद से काशी (वाराणसी) में एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। समाज के दर से ब्राह्मणी ने उस नवजात शिशु को लहरतारा ताल के पास फेंक दिया। उस नवजात शिशु को एक नारू नाम का जुलाहा ने अपने घर लेकर आया और पालन पोषण किया। उस नवजात शिशु का नाम कबीर रखा गया।

कुछ लोगो का कहना हैं, कि कबीर दास का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था, और युवावस्था में जब स्वामी रामानंद (Swami Ramanand) को अपना गुरु माने उसके बाद ही इनको हिंदू धर्म की ज्ञान हुई ।

और कुछ कबीरपंथीयों का यह मानना है कि इनका जन्म काशी में लहरतारा तालाब में कमल पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुआ था।

कबीर दास अपने गुरु से कैसे मिले- (कबीर दास स्वामी रामानंद से कैसे मिले)

बताया जाता हैं, कि एक दिन, रात के समय कबीर दास पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर हुए थे। तभी स्वामी रामानंद जी, गंगा स्नान के लिए सीढ़ियों से उतर रहे थे, कि उनका पैर अचानक से कबीर दास के शरीर पर पड़ गया, और उनके मुख से “राम – राम” शब्द निकला गया। उसी राम-राम शब्द को कबीर दास ने दीक्षा-मंत्र के रूप में मान लिया और रामानंद जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया।

कबीर दास का जन्म स्थान | Birthplace of Kabir Das

कबीर दास का जन्म काशी में एक मगहर नामक गांव में हुआ था। इस बात का सबूत (proof) कबीर दास ने अपनी एक दोहा में उल्लेख किया है: “पहिले दरसन मगहर पायो पुनि काशी बसे आई” अर्थात् काशी में रहने से पहले इन्होंने मगहर देखा था, और इस समय मगहर वाराणसी में है, और वहां कबीर दास का मकबरा भी हैं।

सन्त कबीर दास जीवन-परिचय एक नज़र

नाम                                                संत कबीर दास

अन्य नाम                                        कबीरदास, कबीर परमेश्वर,  कबीर साहब

जन्म                                               विक्रम संवत 1455 (सन1398 )

जन्म-स्थान                                    लहरतारा, काशी, उत्तर प्रदेश

पिता (पालने वाले)                               नीरू (जुलाहे)

माता (पालने वाली)                              नीमा (जुलाहे)

गुरु                                                 स्वामी  रामानंद जी

मृत्यु                                           विक्रम संवत 1551 (1494)

मृत्यु-स्थान                                    मगहर, उत्तर प्रदेश

कबीर जयंत।                                  प्रतिवर्ष जेष्ठय पूर्णिमा के दिन

Religion of Kabir das (कबीर दास का धर्म)

कबीर दास किस धर्म के थे? इसका कोई ठोस सबूत नहीं हैं। कुछ लोग इनको हिंदू कहते हैं, तो कुछ लोग इनको मुस्लमान कहते हैं। इनका पूजा दोनो धर्मो में की जाती हैं। हिंदू धर्म में इनकी प्रतिमा (मूर्ति) बना कर पूजा करते हैं। हालाकि ये मूर्ति पूजन के विरुद्ध थे, और इस्लाम धर्म में इनका मकबरा पर इबादत करते हैं। लेकिन कबीर दास कहते है, कि

“जाति न पुछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान ।

मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥”

कबीर दास का समाज पर प्रभाव (Effect of Kabir Das on society in Hindi)

कबीदास पूरे संसार में सुधार लाना चाहते थे, कबीर ने समाज में फैली कुरीतियों को खत्म किया। इन्होंने अमीर – गरीब, जाति – पाति भेदभाव से   परिपूर्ण   जीवन   में   विश्वास   नहीं   करते   थे।   वे   सादा   जीवन   व्यतीत   करते   थे, और समाज को भी ऐसा ही बनने के लिए अपने रचनाओं के माध्यम से बदलाव का क्रांति लाए।

“कबीरा   खड़ा   बाजार   में, मांगे   सब   की   खैर।

ना   काहू   सों   दोस्ती, न   काहू   सौ   बैर।।”

इस दोहे के माध्यम से कबीर दास यह कहना चाहते हैं, कि इस संसार में आकर कबीर अपने जीवन में बस यही चाहते हैं, कि सबका भला हो और यदि आप किसी से दस्ती नहीं कर सकते हैं तो दुश्मनी भी मत करिए 

“ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये।

औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।”

कबीर दास जी इस समाज से कहना चाहते है, कि सबको ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जो सामने वाले (श्रोता) को अच्छा लगे। साथ ही आप को भी अच्छा लगे। अर्थात् आप किसी को ऐसा ना बोले की आपकी बात किसी बुरा लगे और बाद में आपको भी बुरा लगे की मुझे ऐसा नहीं बोलना चाहिए था।

कबीर दास की रचनाये (Kabir Das ki Rachnaye)

कथनी-करणी का अंग -कबीर

चांणक का अंग -कबीर

अवधूता युगन युगन हम योगी -कबीर

कबीर की साखियाँ -कबीर

बहुरि नहिं आवना या देस -कबीर

समरथाई का अंग -कबीर

अंखियां तो झाईं परी -कबीर

कबीर के पद -कबीर

जीवन-मृतक का अंग -कबीर

नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार -कबीर

भेष का अंग -कबीर

मधि का अंग -कबीर

उपदेश का अंग -कबीर

करम गति टारै नाहिं टरी -कबीर

भ्रम-बिधोंसवा का अंग -कबीर

पतिव्रता का अंग -कबीर

मोको कहां ढूँढे रे बन्दे -कबीर

चितावणी का अंग -कबीर

बीत गये दिन भजन बिना रे -कबीर

कामी का अंग -कबीर

मन का अंग -कबीर

जर्णा का अंग -कबीर

निरंजन धन तुम्हरो दरबार -कबीर

माया का अंग -कबीर

काहे री नलिनी तू कुमिलानी -कबीर

गुरुदेव का अंग -कबीर

नीति के दोहे -कबीर

बेसास का अंग -कबीर

केहि समुझावौ सब जग अन्धा -कबीर

मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा -कबीर

भजो रे भैया राम गोविंद हरी -कबीर

सुपने में सांइ मिले -कबीर

तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के -कबीर

मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै -कबीर

साध-असाध का अंग -कबीर

दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ -कबीर

माया महा ठगनी हम जानी -कबीर

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो -कबीर

रस का अंग -कबीर

संगति का अंग -कबीर

झीनी झीनी बीनी चदरिया -कबीर

रहना नहिं देस बिराना है -कबीर

साधो ये मुरदों का गांव -कबीर

विरह का अंग -कबीर

रे दिल गाफिल गफलत मत कर -कबीर

सुमिरण का अंग -कबीर

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में -कबीर

राम बिनु तन को ताप न जाई -कबीर

तेरा मेरा मनुवां -कबीर

साध का अंग -कबीर

घूँघट के पट -कबीर

हमन है इश्क मस्ताना -कबीर

सांच का अंग -कबीर

सूरातन का अंग -कबीर

मेरी चुनरी में परिगयो दाग पिया -कबीर

कबीर दास के दोहे - Kabir Das ji Ke Dohe

कबीर दास के कुछ famous kabir das dohe, kabirdas in hindi dohe

निम्नलिखित है- 

“गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाय|

बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय||”

“माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोहे।

एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदूगी तोहे।।”

“माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।

कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर ।।”

“सुख में सुमिरन न किया, दु:ख में किया याद ।

कह कबीरा ता दास की, कौन सुने फ़रियाद ॥”

“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ।

पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ।।”

कबीर दास के भजन - Kabir Das ke Bhajan

उमरिया धोखे में खोये दियो रे।

धोखे में खोये दियो रे।

पांच बरस का भोला-भाला

बीस में जवान भयो।

तीस बरस में माया के कारण,

देश विदेश गयो। उमर सब ….

चालिस बरस अन्त अब लागे, बाढ़ै मोह गयो।

धन धाम पुत्र के कारण, निस दिन सोच भयो।।

बरस पचास कमर भई टेढ़ी, सोचत खाट परयो।

लड़का बहुरी बोलन लागे, बूढ़ा मर न गयो।।

बरस साठ-सत्तर के भीतर, केश सफेद भयो।

वात पित कफ घेर लियो है, नैनन निर बहो।

न हरि भक्ति न साधो की संगत,

न शुभ कर्म कियो।

कहै कबीर सुनो भाई साधो,

चोला छुट गयो।।

मन लाग्यो मेरो यार

 मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥

जो सुख पाऊँ राम भजन में

सो सुख नाहिं अमीरी में

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥

 भला बुरा सब का सुनलीजै

 कर गुजरान गरीबी में

 मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥

 आखिर यह तन छार मिलेगा

 कहाँ फिरत मग़रूरी में

 मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥

 प्रेम नगर में रहनी हमारी

 साहिब मिले सबूरी में

 मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥

 कहत कबीर सुनो भयी साधो

 साहिब मिले सबूरी में

 मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥

कबीर दास की भाषा - Kabirdas ki Bhasha

संत कबीर दास की भाषा सधुक्कड़ी एवं पंचमेल खिचड़ी है। अर्थात इनकी भाषा बहुत से भाषाओं से मिल कर बनी है। जिसमे हिंदी भाषा की सभी बोलियों के शब्द के साथ – साथ राजस्थानी, हरयाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी, ब्रजभाषा के शब्दों भी सम्मिलित हैं। ऐसा माना जाता है, कि रमैनी और सबद में ब्रजभाषा की अधिकता है, और साखी में राजस्थानी व पंजाबी मिली खड़ी बोली की अधिकता हैं।

कबीर दास जी से सम्बंधित FAQ

Q:  कबीर दास जी कौन थे?

Ans. कबीरदास या कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि philosopher, और संत थे। जिन्होने अपने रचनाओं के द्वारा समाज में हो रहे कुकर्म को खत्म करने का कार्य किया।

Q: कबीर दास जी का जन्म कब तथा कहाँ हुआ था?

Ans. संत कबीर दास का जन्म विक्रमी संवत 1455 (1398) में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को ब्रह्ममूहर्त के समय तथा काशी में एक मगहर नामक गांव में हुआ था।

Q: कबीर दास जी के माता-पिता कौन थे?

Ans. कबीर दास जी (कबीर साहेब जी) के वास्तविक माता-पिता कोई नहीं है क्योंकि ये पूर्ण परमात्मा है, परंतु इनकी काशी लीला के समय इनका पालन-पोषण नीरू-नीमा नामक जुलाहे दम्पत्ति ने किया था।

Q: कबीर दास जी की पत्नी का नाम क्या था?

Ans.  कबीर दास जी (कबीर परमात्मा) की पत्नी के नाम के सम्बंध में बहुत से मनगढ़ंत कहानी हैं। लेकिन वास्तव में इनकी कोई पत्नी नही थी। उन्होंने खुद इसके बारे में कहा है।

मात-पिता मेरे कुछ नाहीं, ना मेरे घर दासी (पत्नी)।

जुलहा का सुत आन कहाया, जगत करें मेरी हाँसी।।

Q: कबीर दास जी के कितने बच्चे थे व उनके क्या नाम थे?

Ans.  कबीर दास जी (कबीर परमात्मा) के कोई बच्चे नहीं थे। हालाकि उन्होंने अपनी समर्थता का प्रमाण देने के लिए 2 बच्चो को जीवित किया था जिनका नाम कमाल तथा कमाली रखा गया था।

Q: कबीर दास जी के गुरु का नाम क्या था?

Ans. कबीर दास के गुरु का नाम स्वामी रामानंद जी थे।

Q: कबीर दास का जन्म कैसे हुआ था?

Ans. कबीर दास के जन्म के संबंध में लोगों द्वारा अनेक प्रकार की बातें कही जाती हैं कुछ लोगों का कहना है कि वह जगत गुरु रामानंद स्वामी जी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे, तो कुछ लोग का कहना हैं कि इनका जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था।

Q: कबीर दास की भाषा क्या था?

Ans. संत कबीर दास की भाषा सधुक्कड़ी एवं पंचमेल खिचड़ी है। जिसने हिंदी,राजस्थानी, हरयाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी, ब्रजभाषा के शब्दों भी सम्मिलित हैं।

Q: कबीर के प्रमुख ग्रंथों के नाम बताइए?

Ans. कबीर के प्रमुख ग्रंथों के नाम बीजक, कबीर ग्रंथावली, सखी ग्रंथ और अनुराग सागर आदि हैं।

Q: कबीर दास की जयंती कब मनाई जाती हैं?

Ans. हर साल ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को संत कबीर दास जी की जयंती मनाई जाती है।

Q: कबीर दास की मृत्यु कब हुई?

Ans.कबीर दास की मृत्यु विक्रम संवत 1551 (1494) में मगहर में हुई थी।

Q:कबीर दास की शिक्षा कितनी थी?

Ans.  कबीर दास अनपढ़ थे।

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