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दशाश्वमेध घाट वाराणसी के सुप्रसिद्ध घाटों में से एक है जिसका अपना एक धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। विद्वानों ने दशाश्वमेध का अर्थ बताया है कि 10 घोड़ों का बलिदान लोक मान्यताओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा द्वारा एक यज्ञ का आयोजन किया गया था जिसका उद्देश्य था भगवान शिव को निर्वासन से वापस लाना जब भगवान शिव निर्वासन से वापस आए तो उनके आने की खुशी में 10 घोड़ों का बलिदान किया गया था तब से इस घाट का नाम दशाश्वमेध घाट पड़ा। यह बनारस के प्रसिद्ध घाटों में से एक है दशाश्वमेध घाट पर प्रत्येक दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और इस जगह में होने वाले धार्मिक कार्यक्रम में भाग भी लेते हैं दशाश्वमेध का सबसे प्रमुख और विख्यात आकर्षण का केंद्र घाट की गंगा आरती (Ganga aarti) है, दशाश्वमेध घाट पर प्रतिदिन सुबह और शाम दोनों वक्त ही गंगा आरती का आयोजन किया जाता है।
दशाश्वमेध घाट का इतिहास-History of Dashashwamedh Ghat
दशाश्वमेध घाट के बारे में दो कहानिया प्रचलित है जो इस प्रकार से है-
पहली कथा यह कि ब्रह्मा जी ने भगवान शिव के स्वागत के लिए दशाश्वमेध घाट का निर्माण किया था, और दूसरी यह कि भगवान ब्रह्मा ने यहाँ एक महायज्ञ सम्पन्न किया था और बलि में दस घोड़ों का वध किया था इसलिए इसका नाम दशाश्वमेध पड़ गया। वर्ष 1774 में, इसका जीर्णोद्धार इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा किया गया था। यह घाट अग्नि पूजा और गंगा आरती के लिए प्रसिद्ध है, जो हर शाम भगवान शिव, गंगा, सूर्य, अग्नि और पूरी दुनिया को समर्पित यहाँ के पुजारियों द्वारा की जाती है। यात्री के लिए नदी के किनारे का शानदार और रंगीन दृश्य उपलब्ध है। इस घाट पर, साधुओं को धार्मिक अभ्यास करते हुए देखा जा सकता है। जब शाम को यहाँ गंगा आरती होती है, तो इस घाट की असली सुंदरता को देखना अद्भुत होता है। वर्षों से यह घाट श्रद्धालुओं, तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए एक पवित्र स्थल के रूप में मान्य है।
यहाँ पर विभिन्न धार्मिक समारोह और गतिविधिया होती रहती है जिसे देखने बहुत से तीर्थयात्री यहाँ आते रहते है। इस घाट पर हर शाम को गंगा आरती होती है जिसे देखने हजारो की भीड़ एकत्र हो जाती है।
अगर आप इस घाट में कुछ समय बिताते है, तो आपको अंदर एक आध्यात्मिक विचार उत्पन्न होंगे। अलौकिक परिवेश, सुरक्षित वातावरण और ठंडी और ताज़ी हवा के कारण, कई लोग सुबह-सुबह घाट पर दैनिक ध्यान और योग करते हैं। यहाँ समय बिताने से ऐसा लगता है जैसे वे स्वर्ग में बैठे हों। सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य मनमोहक होते हैं तथा गंगा सागर में एक अनोखी छटा छोड़ते हैं। इस समय नौका विहार करने में आनंद आता है।
दशाश्वमेध घाट पर क्या देखे
जब आप दशाश्वमेध घाट आएंगे तो आप यहां पर ऐसी हिंदू धर्म की रीति रिवाज और संस्कृति देखेंगे जो शायद ही आपको कहीं देखने को मिले, सुबह-सुबह घाट पर कई अनुष्ठानों और गतिविधियों को देख सकते हैं इस घाट की गंगा आरती विश्व प्रसिद्ध है शाम के वक्त गंगा आरती देखने का नजारा अत्यधिक मनमोहक होता है गंगा आरती का आनंद नाव पर बैठकर जरूर ले, दशाश्वमेध घाट की संध्या आरती का समय 6:30 बजे है और इस घाट के पास कई प्रसिद्ध मंदिर और पर्यटक स्थल स्थित है।
दशाश्वमेध घाट के समीप स्थित मंदिर
घाट के समीप बाबा विश्वनाथ तथा मां अन्नपूर्णा का विश्व प्रसिद्ध मंदिर स्थित है।
दशाश्वमेध घाट के समीप स्थित घाट (Nearby Ghats)
इस घाट के समीप अहिल्या घाट, मुंशी घाट तथा दरभंगा घाट स्थित है।
दशाश्वमेध घाट तक कैसे पहुंचे
दशाश्वमेध घाट काशी विश्वनाथ मंदिर के बहुत करीब स्थित है, ऑटो रिक्शा या कार ले जा सकते हैं। गोदौलिया से घाट तक पहुंचने के लिए 5 से 10 मिनट पैदल चलना पड़ता है क्योंकि इसके पास किसी भी वाहन की अनुमति नहीं है। कैंट स्टेशन से दशाश्वमेध घाट की दूरी 5.2 किलोमीटर है।
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